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नवंबर 1, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ज्योतिष aadhyatma

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भाग्यवादमे नम्रता है। प्रयत्न वादमे पराक्रम है । नम्रतायुक्त पराक्रम आत्मप्रकाश का द्योतक है।
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कर्म अर्थात साधन !! समष्टि का कर्म है! the thoughts begin in mind।then the karma begin.so do the work in man first.and the thinking of that karma.that and mind inbetween them there is a time.experience it!If u dont have nothing vision about the futur if the good happening u will enjoy but not good then u will be herted.If u dont like this then try to look in to future-this probability will be helpfull in controloing ego and depression too!it is toudh to say future.u can not win the time!If u are a scholor then dont try to read your effect of the speach.It will be automaticaly as your experience!Future telling is nothing a new thing!many creatutre are doing this!they are telling showing sign about the seasons and nature.Human has memory limitations.Dogs can smell better than human!even very eye sight with eagle we know! कर्म अर्थात साधन ! कर्म समष्टि  लियेही होता है । ऐसा अगर नही होता तो उसका फल वगैरह साथ ले जाते जानेवाले और ख़ुद के आनंद के लिए भी कर्म करते है । इसलिए बहोत काम करन

ज्योतिष aadhyatm

भाग्यवादमे नम्रता है। प्रयत्न वादमे पराक्रम है। नम्रतायुक्त पराक्रममे आत्मप्रकाश है । the thoughts begin in mind।then the karma begin.so do the work in man first.and the thinking of that karma.that and mind between them there is a टाइम experience it!If u don't have nothing vision about the futur if the good happening u will enjoy but not good then u will be her ted.If u dont like this then try to look in to future-this probability will be help full in controlling ego and depression too!it is tough to say future.u can not win the time!If u are a scholar then don't try to read your effect of the speech.It will be automatically as your experience!Future telling is nothing a new thing!many creatures are doing this!they are telling showing sign about the seasons and nature.Human has memory limitations.Dogs can smell better than human!even very eye sight with eagle we know! जरुरी है तत्व चिंता की !! एक बात जरुर है जो ज्योतिष के बारे में निरुक्त में है ! ध्योतिती यद् तद ज्योति: ज्

जीवन तीन है

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जीवन तीन है । एक आध्यात्मिक संसार तीसरा स्वप्न विचारमे । इसलिए अगर कोई कहे के मेरा पुरा जीवन दुखमय है तो समजना की वो ३३% दुखी है । संसारमे इतने घुस जाते है की बाकिका कुछ दिखता ही नही । लुटने वाले इतना लुटेगे की ख़ुद को राहगीर बनके खडा रहना पडेगा। दुसरो को यह बतानेके लिए की इस रस्ते मत जाओ यह लुट लेगा कोई आपको । कोई कहता है की मृत्यु निद्रा जैसा है तो एक बात ये भी है । इसकाअर्थ ये भी तो होगा की मृत्यु हर बार आ आ के लेजाता है बार बार मृत्युका अनुभव होता है। फिरभी जीवात्मा डरता रहता है । और वो भी इज्सको बार बार मिलता है उससे ! माया समजती है ये तो निद्रा थी!