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फ़रवरी 15, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुन कहा से आए !!

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कुछ चीजे ऐसी है जो अपनी दृष्टी से है !जैसे की स्टार होटल में नींद आती है लेकिन सुव्वर को गंदे नाले में नींद आयेगी । वो वहा जाएगा तभी चैन आयेगा !ऐसे गुन कहा से आते है ? यह अलग प्रश्न है !तुमने कभी नशा नही किया है और अरे तुमने चखा भी नही है फ़िर भी नही करना चाहते हो यह जन्म जात गुन है ! हिरन मांसाहारी नही है किंतु शेर तो खायेगा !तो अब जगडा ये उठेगा की ऐसी दुनिया क्यो बनाई ! इसी लिए सबसे पहला सूत्र लिखा है परमात्मा रूप बन जाओ अगर यह नही तो दुसरे क्रम पर आगे बढो ! यही तो सूत्रों की कमाल है ! अपना अपना कम कैसे तय किया गया वह जानना कठिन जरुर है लेकिन गीता में स्वधर्म का उपदेश में यह समस्या का समाधान बताने की कोशिश कम नही है !! आवेगस्य शमनम स्वधर्मेंन औ गुन मंडल तू ही रस रचादे । मन गुन कर कछु गाये l शेर ने क्यों मारा !! हिरनों ने क्यों नही !!! यही बीमारी है सारी नासमजको समजने की !!!! उसीके ही सहारे बैठकर ,लिखता हु उसी के बारे में !! प्रत्येक पल देहाकृति भिन्न भिन्न होती है किंतु उसी आधार से तो उस सृष्टि का रचयिता परमात्म रूप तुम्ही साक्षी होते हो वाही उसकी खूबी है !! यह ब

धर्म और श्रध्दा

धर्म का अर्थ फ़र्ज़ है । स्वधर्म का अर्थ अपना धर्मं है । स्वधर्म को समजो । ब्रह्म का कुम्हारकी तरह सृष्टी बनाना और शिवजि संहारक का काम ! यह दोनों अपनी जगह है इसीलिए तो जगत चलता है । कई असुर भी महान हो गए है जैसे की प्रह्लाद, रावन, बलि वगैरह ! जैसे ये दो वार्ताए !! एक शेरनी थी जो बहोत दिनों से जंगलमे दुस्काल होने से बच्चोके साथ भूखी मर रही थी !उसको अपने बच्चोको खिलने कोई शिकार नही मिलता था। किंतु कुछ दिनों के बाद एक भटकत हिरन आ मिला और उसके शिकार से अपना कुटुंब बच गया ! इस कहानी में हमें शेरनी की दया आती है ! दूसरी वार्ता एक हिरनी जंगल में घुमती थी उसका बच्छा खो गया । लेकिन एक शेरनी उसको खा गई। इस कहानी में hame बच्चे को ढूँढती माँ ki दया aati है । बस यही चक्कर है । स्वधर्म का ! ये पाप है क्या ये पुण्य है क्या रीतो पर धर्मकी मोहरे है । युग युग में बदलते धर्मो को कैसे आदर्श बनोगे ! संसार से भागे फिरते हो भगवान कहा तुम पाओगे ! इस लोक को ही अपना न सके उस लोक में भी पछताओगे ! ! जैसे पानी कम आधा भरा हुआ ग्लास आधाखाली भी है आधा भरा हुआ भी है ! दोनों सही है !! किंतु याद रहे दोनों में से एक

सच ज्ञान

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ज्ञान होने से ही सुख दुःख तिरस्कार वगैरह का अनुभव होता है। जैसे की किसीके मृत्युकी ख़बर जब मिलती है तब ही दुःख होता है । जैसे की उसके मरने के दस दिन भले हुए हो ! वास्तवमे तो वो मर गया था औसके बाद के दस दिन तो तुम्हे ऑस्की कोई फिकर न थी ! अपनी ही मस्ती में जीते थे भले वो मर गया था !अर्थात ज्ञान का यहाँ महत्व है और अज्ञान के कारण न दुःख होने की बात! !समय याने की कल का महत्त्व है यहाँ पर !कौनसे समय पर ज्ञान जगत है वोही यहाँ महत्व है!अतः अज्ञान का यहाँ महत्व दिखाई देता है !गहन निद्रमे हमारे होते समय दुनिया का कोई विचार नही रहता !इसीलिए तो अज्ञान को बेचने का व्यापार चला है ! जैसे क्लोरोफोर्म-शराब-बेशुध्ध कराने वाले व्यसन वगैरह !!अब अगर देखने जाए तो ज्ञान की विस्मृति ही करता है अज्ञान !ज्ञान का नाश नही होता। जो घटना घटी है वो तो घटी ही है ! ये बदलती नही है । खली कुछ पलों के लिए तुम्हे अज्ञान से ढँक देती है ये !इसीलिए तो गीतामे कहा है अज्ञानेन वृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ती जन्तवः । हमें प्रतिकूल ज्ञान पसंद नही है केवल अनुकूल ज्ञान ही पसंद आता है !!किन्तु यह सत्य नही है । यही अध्यात्म विषय की बात