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मार्च 25, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पंचाग्नि विद्या

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यहाँ हम पुरूष एवं स्त्री का कुदरत द्वारा उपयोग समज सकते है । कुदरत की माया अद्भुत है ! किंतु उसका काम बिल्कुल ताल बध्ध चल रहा है केवल अहम् के कारण हम सब स्त्री पुरूष के चक्कर में जुटे है !स्त्री आकर्षण कर के या चैलेंज करके पुरूष में आवेग क्रोध या काम द्वारा करवाती है ! और पुरूष पराक्रम करने को विवश हो जाता है ! और गति मन बनता रहता है !! यद् रहे जैसे डिस्कवरी एनीमल प्लेनेट में जानवरों का उपयोग कुदरत कैसे करती है वह देखते है तब यह भूल जाते है की हम भी एक प्राणी ही है !!! और कुदरत बिल्कुल आराम से हमारा उपयोग कर रही है !यह सत्य है !! ज्योतिष शास्त्र में सुर्यादी ग्रहों के देवता और उनके तत्त्व कहे गए है !यह भी आत्मा सूर्य के देवता अग्नि एवं चंद्र मन के देवता वरुण है ! अग्नि मंगल के स्कंदा, भूमि बुध के विष्णु , अवकाश गुरु के इन्द्र ,जल शुक्र के इन्द्राणी एवं वायु शनि के ब्रह्म है !! यहाँ इन सबकी मंत्र में प्रार्थना है । इन्द्रनिश्चा स्कंदाविष्णु ब्रह्मेंद्रादी देवता । वरुनाग्नीदेवाश्चा कुर्वन्तु मम मंगलम । । पञ्च की विशिष्टता ही यही है !क्यो की वेदकालीन देवताओ ज्योतिष मुल्मे है !! आध्यात्मि