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जनवरी 17, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ग्रह तत्व सूचक

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सूर्य आत्मा तत्त्व है। यह उच्च आत्मा का सूचक है। इसे दुनिया के लाभ अलाभ से कोई सम्बन्ध नहीं है । चन्द्र यह मन है । इसका बलिष्ठ होना समृध्ध मन का सूचक है । इसे दुन्वायी बातो सुख दुःख से सम्बन्ध है । बुध पृथ्वी तत्त्व है। इसीमे रूप रस शब्द स्पर्श गंध गुणों से सम्बन्ध है । स्थान का सूचक है । दुन्वाई बातो का सूचक है । इसमें भूमि तत्त्व विशेष है। शुक्र यह जल तत्त्व है । इसी में रसदी गुण है । किन्तु भूमि तत्त्व नहीं है । रसिकता का सूचक है । मंगल अग्नि तत्त्व है । इसमें भूमि एवं जल तत्त्व नहीं है। तेज-देखाव व्यक्तिगत इम्प्रेसन प्रथम दर्शन रूप इसका गुण है । शनि इसमें भूमि-गंध-रूप गुण नहीं है किन्तु स्पर्शादी गुण है इसका भावुक श्पर्श विशिष्ट है । वायु तत्त्व है । गुरु यह आकाश तत्व है । इसका मधुर भाषी गुण बातो से जित लेने की कला कमाल है । इसीमे रूप-गंध-स्पर्श-रस नहीं है ।

ज्योतिष में हम कहा ?

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ज्योतिषशास्त्र वेदांग है । आयुर्वेद उपवेद है ! आयुर्वेद में देह की बाते है । ज्योतिष जगत मन देह आत्मा के सम्बन्ध की गति की बात करता है । अतः ध्योतिती यत तद ज्योतिः ज्योतिषं ऐसा निरुक्त ने कहा है ! सर्व परमात्मा मय  य है । और माया भी परमात्मा में ही है । माया में जो परमात्म अंश विदित है वोही तो आत्मा तत्त्व है । माया युक्त आत्म तत्त्व ही अहम् है ! ऐसी ही माया में यह सब है। इसीमे पंच महाभूत अग्न्यादी है !यही तो देह में है ! बहिर्माया यह जगत है और अन्तः माया हमारा मन है ! जैसे माया प्रभु के अन्दर समजी नहीं जाती वैसे ही मन को हम पहचान नहीं सकते । आत्म तत्व तो प्रभु के अंश होते हुए सर्वत्र है । स्वयं माया ही खुद उसे उपयोग कर बढाती लगाती है किन्तु जैसे अन्धकार प्रकाश के सामने खुद विलीन होता रहता है वैसे ही माया की कहानी चल रही है !! http://www.youtube.com/watch?v=N8vmz-QkwDo ये जो देह है वह इस जगत का भाग ही है ! इसीमे भी पंचभूत ही है !! खूबी ये है की यहाँ पैदा होते है वात पित्त और कफ ! जसी से देह चक्र चलता है ! अंदरूनी प्रकृति है मन ! वातादी के उत्पति कारण है पंच भुत ! और इसी क