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अप्रैल 11, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ज्योतिष फल रहस्य

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मूलत: परमात्मा निर्लेप होते हुए भी कुछ पैदा हो जाता है वो है समय !!जिसे संसृत भाषा में काल कहा है । यही महाकाल शिव भी कहलाता है । इसीलिए तो पुराने लोग कहते है शिव स्वयंभू है । यही पैदा हुए ने बाकि अवकाश रहा है । यही है प्रकृति । अवकाश को गुरुतत्व बताया है । इसीकी - नेगेटिव बाजु है वोही तो नेगेटिव गुरु है । पुरानो में देव गुरु बृहस्पति एवं दानव गुरु शुक्रा चार्य है। यही मैथोलोजी तो चलती आती रही है । यह बात ज्योतिष में लगे गुरु शुक्र के ग्रह से भी है। किन्तु यह बात अभी तक समाज में नहीं आती है की इतने विचक्षण लोगो के बिचमे यह अन्ध्श्रध्धालू लोग अज्ञान का जमला कैसे आ गया है !!बिलकुल मुर्ख या तो शास्त्रों का दुरूपयोग या तो केवल द्रव्य लालसा या तो अत्यंत चालाकी से खुद को पंडित बना थाना के चलाना यह सब पिछले पांचसो सात्सो सालो से घुसा हुआ ज्यादा दिखाई देता है ! जो आज भी चल रहा है । यह चित्र से सहज समज में आयेगा की कैसे पंचा महाभूत के सम्बन्ध को ज्योतिष ने जोड़ा है। जैसे मूर्खो को समजने के लिए राहू अन्धकार सूर्य को ग्रहण समय खा जाता है ऐसी कहानी में विज्ञानं की बात रखली है । वैसे कई रहस्य प

पञ्च भुत

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पञ्च तत्वों को लेकर देव पंचायत का प्राधान्य है । यही पंचा तत्त्व देह में भी है । देह में पंच तत्त्व का मूर्ति के रूप में जो है वो गृह देवाता है । ज्योतिष शास्त्र से लेना देनी  एवं मंत्र अवक ड हा  दी चक्रोसे नियत करवाकर देव पंचायत रखनी चाहिए। अग्नि देवी , भूमि शिव , वायु सूर्य ,जल गणेश और आकाश विष्णु पंचायत प्रसिध्ध है । अग्नि की जगह देवी ,वायु की जगह हनुमान,शनि वगैरह देवता ये अपनी श्रध्दा अनुसारत : रख सकते है। इसीके आगे है ग्राम देवाता। अब तो ग्राम देवता के कई मंदिर बनते गए है गावों  और शहरों में ! यही पंच तत्त्व की देह की स्तिति का वर्णन है यहाँ पर । बस सीधे शब्द में कहे तो यह समष्टि मंदिर है  अग्नि भूमि वायु वारी अवकाश का !! अगर यह न समज  ए तो गाँव  के मंदिर में पांच देव को समजो  !! अगर यह भी नहीं तो घर में देव पंचायत से समजो  !! आखिर में यह अपने देहमंदिर में तो समजो  !! डोंगरे महाराजने भी पंचदेव पूजा का माहात्म्य कहा है