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अप्रैल 26, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आश्रम का व्यवसाय !!

आजकल देखेंगे की अध्यात्मिक सेवा दृष्टिकोण से आश्रम बनाते रहे है । कुछ लोग अध्यात्म रस ना होते हुए भी प्रवास में रुकने की सुविधा करने लगे है ! और आश्रम वाले इसे एक अर्थ साधन भी मानते चले है । यह पध्धति ब्राह्मन लोगो ने विद्या बेचीं नहीं जाती इस आधार से की होगी । मेरे बचपन में मैंने देखा है की मेरे पिताजी कुछ विद्यार्थी को घर में रखा करते पढ़ते थे ! खैर अब तो पढाई भी बिकने लगी है !! किन्तु शास्त्रीय चर आश्रम तो मौजूद है !! इसमें गृहस्थास्रम को महान आश्रम कहा है । सब अपने इसी आश्रम को सम्हाले बस यही भी एक श्रेष्ठ आश्रम सेवा है !!

यथा स्वप्ने विहरति माया

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मैंने देखा है की निद्रा में स्वप्न आते है ! अर्थात स्वप्न को टूटने से जाग्रति होती है !! यह संसार ! और जाग्रति में सतत रज: गुणों से थक कर तम: का सहारा ले लेता है यह मन ! थका हुआ देह !! और पुनः आ जाती है नींद !! निद्रा !!सारी दुनिया की चिंता ये अस्त हो जाती है निद्रा में !! बस यही चक्कर चलता रहता है । स्वप्न में प्रकाश करता है आत्मा ! और जागृत अवस्था में सूरज !! दुसरे अर्थ में देखे तो निद्रा के पीछे बड़ा रहस्य छुपा है ! एक अद्भुत ख़ामोशी !! किन्तु शरीर को हिला के उठा सकते है ये जगत ! इसी तरह निद्रा ले जाती है किन्तु इन्द्रियो से जुडा जगत का सम्बन्ध स्पर्श करता है देह द्वारा !! मृत्यु से यह भिन्न है !! ---- आगे देखे तुरीयं ते धाम यह  देखेंगे तो आत्म  तत्व का महत्त्व समज में आ जाएगा !! हमारे एक चाचा थे !! उनके लैटर पेड़ पर कायम लिखा हुआ रहता था !! तुरी  यं   ते धाम !! मै  …आप.…और बाकी  का जो कुछ है वह सब। य़ह तीनो के सिवा  जो चौथा है वो !!! इसी बात को प्रभुकी जगह बताने का पुष्पदंत ने शिव महिम्न स्तोत्र  प्रयास किया है !!