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पितृ ओ की कृपा

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चन्द्र मंडलों पारी पीतर: निवसन्ति -इस प्रकार का उल्लेख ज्योतिष ग्रंथो मै है ! अर्थात पितृओ का मन वगैरह चंद्रमास तुल्य है ! हमारा १ मास उनका दिन रात बनता है । इसी लिए तो द्वादशा उनके लिए वर्षी होता है !उनकी प्रार्थना भी उचित है !! पितृ का यही कारण रुतु सम्बन्ध से भी है । यही बात आयुर्वेद मै रस और रस के सम्बन्ध से कफादी और इसीसे जो रुतु ओ सम्बन्ध !!यहाँ बन जाता है पित्रुसे हमारा वंश परंपरागत जिनेटिक्स सम्बन्ध !! सूर्य आधारित फल कथन मै सायन ज्योतिष मै गुण की बाते कैसे मिलती दिखाई देती है यही रहस्य यहाँ छिपा है !! याद रहे पौधे की जिन्दा डाली गाड देने से वो भी दूसरा पौधा बनता है !! वैसे हम भी हमारे पितृ ओ के जीवित भाग की वृध्धि -देह को उनके ढांचे मै डालते हुए ही जी रहे है ! माता पिता की कुंडली के कई वारसागत यो हमारी कुंडली मै देख सकते है !! मुझे एकबार प्रवचन में पूछा गया था "क्या श्राध्धमें खिलने से पितृ को पहोचेगा ? "और इसी बात को मैंने हा कहा था और समजाया था ! आप अगर गुलाब के पौधे से डाली का टुकड़ा ले कर जमीं में गद देंगे तो दूसरा गुलाब का पौधा बने गा ! अब इस पौधे में आ