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नवंबर 25, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इसी जगत के रहस्य को

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विविध धर्मो फिलोसोफारो को पढ़ते हुए एक बात तो अनुभव से सच है ! की इस दुनिया का रहस्य सोचते सोचते जैसे ही पहोचे गे तब हमें जैसा लगे की ये जाना उसी समय ही हम माया में आ गिरते यही एक अद्भुत बात है । इसी विचार को लेकर स्टीफन की सोच सही मालूम पड़ती है !! उपनिषद में एक गोपाल की कथा है !! वो आत्मा को जानने के लिए शास्त्रों में खो जाता है ! अंत में जब उसको पूछा जाता है की सर्वत्र वेड देख सकता है तब वो हा कह कर अब क्या करे वो पूछता है तब प्रत्युतर उसे मिलता है पुन: गोपाल का काम ही करो !! कोई कहता है यह सब मेरा है कोई कहता है कुछ मेरा ही नहीं !! तो ये मेरा क्या है ? एक कविने दोनों मेरा नहीं मेरा है दोनों को पूछा है !! क्या करे इसी उल्जन में कई गिर जाते है ! http://www.youtube.com/watch?v=XeLyLOR0pEw