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सज्जन के साथ कुदरत है की नहीं !!

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एक बार एक साधु ने देखा तो एक नाली के पानी में एक बिच्छु डूब रहा था।  साधु को दया आई !! उसे बचाना कर्तव्य है।  यही बात को लक्ष्य में रखते हुए  धीरे से अपने हाथ से उसे उठा लिया !! जैसे उसने उठाया तो बिच्छु ने उसे डंख मारा !! वो हाथ से छूट कर फिर पानी में जा गिरा !! किन्तु साधु ने फिरसे उसे निकला तो उसने फिरसे डंख मारा !! साधु का सिद्धांत था दुर्जन भले अपना स्वभाव न छोड़े सज्जन को अपना स्वभाव नहीं छोड़ना !! बस उसने फिर कोशिश की !! बिच्छू ने फिर डंख मारा!! साधु कराह ने लगा !! हाथ में पीड़ा बढ़ गई ! लेकिन देखो !! सज्जनो का स्वभाव !! ऐसे दर्द वाले हाथसे पूण: कोशिश करने लगा !! और वो बिच्छु डंख मारता गया। यह कहानी कुछ लोग खत्म कर देते है यह गलत है !! सज्जन सज्जनता छोड़ता नहीं ! दुर्जन दुर्जनता छोड़ता नहीं !! बात यहाँ रुकती नहीं है !! साधु का हाथ बरी बरी डंख के ज़हर से जूठा हो गया !! और वो हाथ से काम करना रुक गया !! और बिच्छु नाली में डूब कर मर गया !! अब बोलो सज्जन के साथ कुदरत है की नहीं !!